भारत की संस्कृति काफी प्राचीन है. इसकी गवाही देते यहां के मंदिर, किले और अन्य स्मारक मिल जाएंगे. इनमें से कुछ इमारत तो काफी रहस्यमयी हैं

जिनका पता आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं. ऐसा ही 1000 साल पुराना एक मंदिर भगवान शिव का भी है.

तमिलनाडु के तंजौर शहर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर (वृहदेश्वर मंदिर) है, जिसे स्थानीय भाषा में लोग 'पेरुवुटैयार कोविल' भी कहते हैं. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है

और इसका निर्माण चोल शासन के महान शासक राजराजा प्रथम ने कराया था. इस मंदिर को करीब साल 1003 से 1010 से बीच बनाया गया है.

इस मंदिर को बने 1 हजार साल से अधिक का समय गुजर चुका है, लेकिन आज तक तक मंदिर अपनी जगह से डिगा तक नहीं है. जबकि, इस मंदिर की कोई नींव तक नहीं है. देखने में यह मंदिर पिरामिड के आकार का लगता है.

मंदिर की ऊंचाई करीब 66 मीटर है, यानी कि 15 मंजिला इमारत के बराबर. हर मंजिल आयताकार शेप में है, जिन्हें बीच में खोखला रखा गया है

मंदिर में ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, जिनका कुल वजन करीब 1.3 लाख टन है. हालांकि, बताया जाता है कि इस मंदिर के 100 किलोमीटर के दायरे में ग्रेनाइट की कोई खदान नहीं है

ऐसे में बिना किसी आधुनिक सुविधा के उस समय इतने वजन के पत्थरों ढोकर कैसे लाया गया होगा. इस सवान का जवाब आज तक नहीं मिल पाया है

इस मंदिर में लगे पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए किसी चूने या सीमेंट का सहारा नहीं लिया गया है,

बल्कि, पत्थरों के खांचे काटकर उन्हें आपस में फंसाकर जोड़ा गया है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के गुंबद की कोई परछाई नहीं बनती है.

मंदिर के गुंबद का वजन करीब 88 टन है, जिसे केवल एक ही पत्थर से बनाया गया है. गुंबद के ऊपर करीब 12 फुट का स्वर्ण कलश रखा हुआ है.

हालांकि, इतने वजनी गुंबद के पत्थर को मंदिर के ऊपरी छोर पर कैसे ले जाया गया होगा, इसका आज तक पता नहीं चल पाया है.

वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए इस मंदिर का रहस्य, 1 हजार साल से बिना नींव के है खड़ा