एक फीसदी किसान भी स्वतः फसल बीमा नहीं करवाते, क्योंकि बीमा कंपनियों पर ठगी का आरोप लगाया जाता है. कृषि विभाग का दावा इसके विपरीत है।

कोटा :- सरकार ने लंबे समय से किसानों को खराब फसल से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए फसल बीमा करवाती है, लेकिन किसानों को इन बीमाओं में कोई दिलचस्पी नहीं है। ज्यादातर किसान बीमा नहीं करवाते हैं, इसलिए जब फसल खराब होती है, तब उन्हें क्लेम नहीं मिलता है. हालांकि, किसान को इसका प्रीमियम भरने पर बहुत कम राशि देनी पड़ती है। केंद्रीय और राज्य सरकारें इसकी लगभग आठवें हिस्से का भुगतान करती हैं। इसके बावजूद, कुछ किसान स्वतः अपनी मर्जी से फसल बीमा करवाते हैं।

लोन लेने पर बीमा स्वतः मिलता है:

कोटा जिले में 67763 किसानों ने बैंकों से बीमा लिया है। अभी तक 259887 एप्लीकेशन बनाए गए हैं। कुल 333 किसान अपनी इच्छा से लोन ले सकते हैं। 67430 अन्य किसानों ने बैंक या सोसाइटी से बीमा लिया है। इसके अनुसार, स्वयं बीमा करवाने वाली सूची में केवल 0.5 प्रतिशत किसान हैं। रबी की फसल में सिर्फ 131 किसानों ने बीमा करवाया था, जबकि खरीफ की फसल में 282 किसानों ने।

बीमा कंपनियां अपने खाते भर रहे हैं:

किसानों का कहना है कि बीमा कंपनियां हमें धोखा देती हैं। फसल खराबा का एकमात्र उपाय क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट है। इसमें सर्वेयर अकेले विवरण भरता है। किसानों को बीमा का पूरा क्लेम नहीं मिलता, क्योंकि उनकी पूरी जानकारी नहीं मानी जाती। कई किसानों का दावा है कि उन्हें प्रीमियम से भी आधी राशि नहीं मिली है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2019 से अब तक कृषि विभाग को 561 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिला है, जबकि किसानों को सिर्फ 204 करोड़ रुपए का क्लेम मिला है। किसानों का कहना है कि कंपनी इस प्रीमियम से अपना खर्च भर रही है।

35 प्रतिशत क्षेत्र में बीमा भी नहीं था:

कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस बार खरीफ की फसल 2 लाख 78 हजार हेक्टेयर में बुवाई हुई है, इसकी अपेक्षा सिर्फ 255737 हेक्टेयर में। जबकि 85353 हेक्टेयर जमीन का ही बीमा हुआ है। ऐसे में कोटा जिले में लगभग 35 फीसदी से भी कम जमीन फसल बीमा से कवर है। कृषि विभाग के कार्यवाहक अतिरिक्त निदेशक खेमराज शर्मा ने कहा कि अभी पूरी जानकारी नहीं मिली है। 1 लाख से अधिक हो सकता है। अगस्त महीने के अंत तक अंतिम फिगर आ जाएगा। उनका दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग एक लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन का फसल बीमा किया गया है।

किसानों का केवल 20 प्रतिशत प्रीमियम:

अतिरिक्त निदेशक शर्मा ने कहा कि किसान केवल कुछ प्रतिशत प्रीमियम देते हैं, जबकि राज्य और केंद्र दोनों बराबर हिस्सा देते हैं। किसान सिर्फ 20 प्रतिशत प्रीमियम देते हैं, जबकि राज्य सरकार और केंद्र सरकार लगभग 80 प्रतिशत राशि का भुगतान करते हैं। किसानों को इसके बावजूद योजना में रुचि नहीं है। बागवानी फसलों में खराबी का कारण अधिक होता है और इसकी लागत भी अधिक होती है। किसानों को इसलिए इन फसलों के लिए थोड़ा अधिक प्रीमियम देना होगा। फसल बीमा का प्रीमियम 8 से 10 प्रतिशत होता है। इसमें किसानों का 2% से 4% हिस्सा है, शेष राज्य और केंद्र सरकारों का हिस्सा है।

योजना में जिले के आधे किसान शामिल थे:

निदेशक शर्मा ने कहा कि अधिकांश किसानों का केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) है या केसीसी से लोन लिया है, इसलिए वे बीमा खरीदते हैं। जिले में लगभग 1 लाख 20 हजार किसान हैं, लेकिन केवल 67,000 किसानों ने बीमा किया है। 50 प्रतिशत से भी कम है। किसानों का विश्वास है कि बीमा क्लेम नहीं मिलता। उनका कहना था कि हमने प्रचार और फायदे भी बताए हैं, लेकिन अधिक कवरेज नहीं मिलता है।

किसानों को फायदे नहीं मिलते, कई समस्याएं हैं:

भारतीय किसान संघ के प्रांत मंत्री जगदीश शर्मा कलमंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा में कई समस्याएं हैं, इसलिए किसानों को यह अच्छा नहीं लगता। सरकारी योजना में कई समस्याएं हैं। बीमा कंपनियां आसानी से प्रीमियम वसूल लेती हैं, लेकिन दुर्घटना होने पर मदद नहीं मिलती। किसान और सरकारी निकाय सर्वे करके रिपोर्ट देते हैं, लेकिन बीमा कंपनियां कई बाधा डालती हैं। उन्होंने कहा कि चक्कर कटवाएं जाते हैं, किसानों को कुठाराघात किया जाता है, लेकिन उसे कुछ नहीं मिलता।

सरकारी विभाग असहज है:

जगदीश शर्मा कलमंडा का दावा है कि किसान पोर्टल पर फसल खराब होने की सूचना देते समय एक खसरा नंबर डालने के बाद पोर्टल बंद हो जाता है। सब जानकारी देने में घंटे लगते हैं। इन समस्याओं के चलते किसान बीमा कंपनियों से दूर हो रहे हैं। उनका दावा था कि इसका मूल कारण बीमा कंपनियों का भ्रष्टाचार और सरकार और प्रशासन की उदासीनता है। हमारे विचार में किसानों को लाभ मिलना चाहिए। खराबी की सूचना देने के लिए पंचायत स्तर पर एक कार्यालय होना चाहिए; लोग ऑनलाइन या फोन पर शिकायत कर सकते हैं, जो बहुत कम लोग कर सकते हैं। किसानों को बीमा क्लेम देने के लिए भी पारदर्शी प्रणाली होनी चाहिए।

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